सथवारो जहां होती है कला से क्रान्ति

सथवारो मेला, एक ऐसा मंच जहां उन हस्तकलाओं का प्रदर्शन होता है जो आज के चकाचौंध भरे बाजारों में कहीं छिप से गए है। हमारी संस्कृति और धरोहर की मिसाल है सथवारो मेला। अदाणी फाउंडेशन के जरिए 10 राज्यों की हस्तकलाओं ने इस मंच से दिखाया की हम भारत के विरासत की असली पहचान है। छ्त्तीसगढ़ अपनी हस्तकलाओं के लिए विशेष रुप से जाना जाता है। रायगढ़ के तमनार ब्लाक का भालूमूढ़ा गांव हस्तकालाओं के जरिए अपनी जीविका चलाता है। इस गांव में 500 घर है और जंगल की गोद में बसे इस गांव के लोग बैम्बू आर्ट के जरिए भोगली,सूप, हाथ पंखा और फूलदान बनाते हैं। भालूमूढ़ा गांव में ज्यादातर आदिवासी आबादी धनवार और टूरी समुदाय की है जहां गरीबी, जैसे इनकी किस्मत बनी गई थी लेकिन अदाणी फाउंडेशन ने यहां की आबादी के हुनर को पहचाना और उसे एक दिशा देने ठानी, जिससे ना सिर्फ इलाके के तस्वीर बदली बल्कि यहां के लोगों के जीवन में भी क्रांतिकारी बदलाव आया। यहां के लोग बांस की हस्तकलाओं में निपुर्ण थे। फाउंडेशन के प्रयासों के जरिए ‘गणेश’ स्वंय सहायता समूह बनाया गया, जिससे जुड़कर भालूमूढ़ा गांव के लोग अब बैम्बू आर्ट के जरिए अपना भविष्य बदल रहे है। लघु स्तर पर ये कुटीर उद्योग इनके जीवन में बदलाव ला रहे है। बात सिर्फ भालूमूढ़ा की नहीं है, सरगूजा जिले के 12 गांव भी अदाणी फाउंडेशन की मदद से परिवर्तन की लौ जगा रहे है। फाउंडेशन ने यहां परसा गांव में ‘महिला उद्यमी बहुउद्देशीय सहकारी समिति लिमिटेड’ का गठन किया,जिसमें 11 महिला कोर मेंबर हैं और समिति में 39 स्वयं सहायता समूह से 250 महिला मेंबर्स को जोड़ा गया है। ये महिला उद्यमी मसाला कारोबार का एक अलग बाजार तैयार कर चुकीं है। ये महिलाएं गरम मसाला,हल्दी, लाल मिर्च,जीरा और फूल चावल खुद तैयार करती हैं इसके अलावा सरसों का तेल, सलोनी नमकीन मूर्रा मिक्सचर,साबून भी स्वयं सहायता समूह की महिलाएं बना रही है जिसका बाजार भी बहुत बड़ा बन चुका है। इन महिलाओं ने खेती के क्षेत्र में कदम रख दिया है और कृषि उत्पादों के बाजार में इनके द्वारा निर्मित जैविक खाद, गोबर के कंडे भी उपलब्ध है। इस समूह में परसा, घाटबर्रा, बासेन,सालहे,तारा,फतेहपुर,हरीहरपुर,गूमगा और उदयपुर समेत कई ऐसे गांव है जहां ये महिला उद्यमी काम करती है और अपने परिवार का भरण-पोषण करती है। बाजार की प्रतिस्पर्धा को देखते हुए इन महिलाओं ने मोबाइल पर्स,बैग और झूमर बनाना शुरु कर दिया साथ ही सेनेटरी पैड और फिनाइल जिससे आधुनिक बाजार में इनके प्रोडक्ट दिखने लगे हैं। ये महिलाएं कम खर्च में अपने सामानों के जरिए बाजार की दिशा तय कर रही है और इससे इनकी आमदनी भी बढ़ रही है। स्वयं सहायता समूह की महिलाओं की बात करें तो महीने में उनकी कमाई 3 से 12 हजार रुपए तक हो जाती है, साथ अपने बनाए गए समान को ये अपने राज्य के सभी जिलों के अलावा आंध्र प्रदेश,झारंखड और मध्य प्रदेश के बाजारों में उपलब्ध करा रहीं है जिससे इनके आमदनी में बढ़ोत्तरी हो रही है।

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