प्रत्येक राज्य के वित्त मंत्री को ज्ञापन देकर व्यापारी करेंगे इस निर्णय को वापिस लेने की माँग’

रायपुर । छत्तीसगढ़ चेम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज एवं कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स( कैट) सी.जी.चेप्टर के संयुक्त तत्वाधान में ”व्यापार सम्मेलन” चेम्बर कार्यालय चै. देवीलाल व्यापार उद्योग भवन, बाम्बे मार्केट, रायपुर में आयोजित की गई।
व्यापार सम्मेलन में मुख्य अतिथि -कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स( कैट) के राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय श्री बी.सी.भरतिया जी, अध्यक्षता-माननीय श्री प्रवीण खंडेलवाल जी,राष्ट्रीय महासचिव एवं विशेष अतिथि माननीय श्री सुमीत अग्रवाल जी, राष्ट्रीय सचिव प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।
कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बी.सी.भरतिया जी,राष्ट्रीय महासचिव श्री प्रवीण खंडेलवाल जी, राष्ट्रीय सचिव श्री सुमीत अग्रवाल जी, चेम्बर प्रदेश अध्यक्ष श्री अमर पारवानी, कैट प्रदेश अध्यक्ष श्री जितेन्द्र दोशी ने बताया कि जीएसटी कॉउंसिल ने गत 28-29 जून को अपनी मीटिंग में किसी भी प्रकार का मार्का लगे हुए खाद्यान्न, बटर, दही, लस्सी आदि को 5 प्रतिशत के कर स्लैब में लाने को देश के आम नागरिकों पर प्रतिकूल प्रभाव डालना बताते हुए कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ( कैट) एवं अन्य खाद्यान्न संगठनों ने कहा कि यह निर्णय छोटे निर्माताओं एवं व्यापारियों के मुकाबले बड़े ब्रांड के व्यापार में वृद्धि करेगा और आम लोगों द्वारा उपयोग में लाने वाली वस्तुओं को महँगा करेगा । अब तक ब्रांडेड नहीं होने पर विशेष खाद्य पदार्थों, अनाज आदि को जीएसटी से छूट दी गई थी। कॉउन्सिल के इस निर्णय से प्री-पैक, प्री-लेबल वस्तुओं को अब जीएसटी के कर दायरे में लाया गया है । अनब्रांडेड प्रीपैक्ड खाद्यान्नों जैसे आटा,पोहा इत्यादि पर 5 प्रतिशत की दर से जीएसटी का प्रावधान किया गया है।
कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बी.सी.भरतिया जी,राष्ट्रीय महासचिव श्री प्रवीण खंडेलवाल जी, राष्ट्रीय सचिव श्री सुमीत अग्रवाल जी, चेम्बर प्रदेश अध्यक्ष श्री अमर पारवानी, कैट प्रदेश अध्यक्ष श्री जितेन्द्र दोशी ने कहा कि इस मामले पर सभी राज्यों की अनाज, दाल मिल सहित अन्य व्यापारी संगठन अपने-अपने राज्यों के वित्त मंत्रियों को ज्ञापन देकर इस निर्णय को वापिस लेने का आग्रह करेंगे । बेहद खेद की बात है कि सभी राज्यों ने जीएसटी काउन्सिल की मीटिंग में सर्वसम्मति से इसको पारित कर दिया । ऐसा लगता है कि किसी भी वित्त मंत्री ने इस बारे में विचार नहीं किया
कि छोटे शहरों एवं अन्य जगह के व्यापारी किस प्रकार इस निर्णय की पालना कर पाएँगे तथा इस निर्णय का वित्तीय बोझ आम लोगों पर किस प्रकार से पड़ेगा । यह भी खेद की बात है कि देश में किसी भी व्यापारी संगठन से इस बारे में कोई परामर्श नहीं किया गया । देश में केवल 15 प्रतिशत आबादी ही बड़े ब्रांड का सामान उपयोग करती है जबकि 85 प्रतिशत जनता बिना ब्रांड या मार्का वाले उत्पादों से ही जीवन चलाती है । इन वस्तुओं को जीएसटी के कर स्लैब में लाना एक अन्यायपूर्ण कदम है, जिसको काउन्सिल द्वारा वापिस लेना चाहिए और तत्काल राहत के रूप में इस निर्णय को अधिसूचित न किया जाए ।
कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बी.सी.भरतिया जी,राष्ट्रीय महासचिव श्री प्रवीण खंडेलवाल जी, राष्ट्रीय सचिव श्री सुमीत अग्रवाल जी, चेम्बर प्रदेश अध्यक्ष श्री अमर पारवानी, कैट प्रदेश अध्यक्ष श्री जितेन्द्र दोशी ने कहा कि निश्चित रूप से जीएसटी कर संग्रह में वृद्धि होनी चाहिए किन्तु आम लोगों की वस्तुओं को कर स्लैब में लाने के बजाय कर का दायरा बड़ा करना चाहिए जिसके लिए जो लोग अभी तक कर दायरे में नहीं आये हैं, उनको कर दायरे में लाया जाए जिससे केंद्र एवं राज्य सरकारों का राजस्व बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि आजादी से अब तक खाद्यान्न पर कभी भी कर नहीं था किन्तु पहली बार बड़े ब्रांड वाले खाद्यान्न को कर दायरे में लाया गया । उन्होंने कहा कि सरकार की मंशा आम लोगों की रोजमर्रा की जरूरतों को कर से बाहर रख उनके दाम सदैव कम रखने की रही है। क्या वजह थी कि 2017 में तत्कालीन वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली ने क्यों इन जरूरी वस्तुओं को कर से बाहर रखा और अब ऐसा क्या हो गया जिससे इन बुनियादी वस्तुओं पर कर लगाना पड़ा।
कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बी.सी.भरतिया जी,राष्ट्रीय महासचिव श्री प्रवीण खंडेलवाल जी, राष्ट्रीय सचिव श्री सुमीत अग्रवाल जी, चेम्बर प्रदेश अध्यक्ष श्री अमर पारवानी, कैट प्रदेश अध्यक्ष श्री जितेन्द्र दोशी ने कहा कि प्रथम दृष्टि में किसान भी इस निर्णय से प्रभावित होता दिखाई देता है क्योंकि किसान भी अपनी फसल बोरे में पैक करके लाता है तो क्या उस पर भी जीएसटी लगेगा, इसकी काउन्सिल ने स्पष्ट नहीं किया है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रत्येक पैक पर मार्का लगाना और अन्य जरूरी सूचना लिखना फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड कानून के अंतर्गत आवश्यक है । यदि कोई बिना मार्का के किसी सामान को बेचना भी चाहे तो नहीं बेच सकता और मार्का लगते ही वो जीएसटी के दायरे में आ जाता है ।
इस निर्णय के अनुसार अब यदि कोई किराना दुकानदार भी खाद्य पदार्थ अपनी वस्तु की केवल पहचान के लिए ही किसी मार्का के साथ पैक करके बेचता है तो उसे उस खाद्य पदार्थ पर जीएसटी चुकाना पड़ेगा। इस निर्णय के बाद प्री-पैकेज्ड लेबल वाले कृषि उत्पादों जैसे पनीर, छाछ, पैकेज्ड दही, गेहूं का आटा, अन्य अनाज, शहद, पापड़, खाद्यान्न, मांस और मछली (फ्रोजन को छोड़कर), मुरमुरे और गुड़ आदि भी महंगे हो जाएंगे जबकि इन वस्तुओं का उपयोग देश का आम आदमी करता है।

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